Saturday 19 March 2016

हिन्दी के कालजयी लेखक और उनकी किताबें.....

भारत विविधताओं से भरा देश है। यहां की संस्कृति, परंपरा, बोली, भाषा कुछ ही दूरी पर बदल जाती है। यहां के लोग हजारों भषाओं में सवाद करते है, लेकिन संविधान के 22वीं अनुसूची में 22 भाषाओं को शामिल किया है। जिसमें देश की समृद्ध भाषाओं की सूची है। इसके बावजूद भारत में सर्वव्यापी भाषा हिन्दी है, जो पूरे देश भर में समझी और बोली जाती है। इस हिन्दी को और समृद्ध बनया है हिन्दी लेखकों ने जिनकी आज हम बात करने जा रहे हैं। आज हम हिन्दी के उन लेखकों के बारे में बात करेंगे जो स्वयं भारत के लाल थे और उनकी रचना कालजयी है, जिससे आज की नई पीढी प्रेरणा लेती है। आज इन लेखकोें की किताबें पढ़ने के लिए ज्यादा मशक्कत करने की जरूरत नहीं। किसी भी आॅनलाइन बुक्स स्टोर (online bookstore) पर जाकर कोई भी आॅनलाइन किताब खरीद (buy books online) कर पढ़ सकते हैं।

प्रेमंचद - गोदान
प्रेमचन्द हिन्दी साहित्य की बात की जाए तो प्रेमचंद का नाम सबसे पहले आता है। प्रेमचंद हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय साहित्याकोरोंम में से हैं और उनकी अनेक रचनाओं की गणना कालजयी साहित्य के अन्तर्गत की जाती है। ‘गोदान’ तो उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना तो है ही, ‘गबन’, ‘निर्मला’, ‘रंगभूमि’, ‘सेवा सदन’ तथा कहानियों में कफन, ईदगाह, दो बैलों की कथा आदि हिन्दी साहित्य का अमर अंग बन गई हैं। इनके अनुवाद भी भारत की सभी प्रमुख तथा अनेक विदेशी भाषाओं में हुए हैं। ‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है। उपन्यास में से कुछ....
‘होरीराम ने दोनों बैलों को सानी-पानी देकर अपनी स्त्री धनिया से कहा-गोबर को ऊख गोड़ने भेज देना। मैं न जाने कब लौटूं। जरा मेरी लाठी दे दो।’

कामायनी-जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद भारत के उनक साहित्यकारों में रहे हैं जो इतिहासकार भी थे। उनके साहित्य में भारतीय इतिहास की हमेशा झलक मिलती है। जिस समय खड़ी बोली और आधुनिक हिन्दी साहित्य किशोरावस्था में पदार्पण कर रहे थे, तक काशी के ‘सुंघनी साहु’ के प्रसिद्ध घराने में जयशंकर प्रसाद जन्म हुआ। अगर प्रसाद की रचनाओं की बात की जाए तो उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना कमायनी है जो एक महाकाव्य है। यह आधुनिक छायावादी युग का सर्वोत्तम और प्रतिनिधि हिंदी महाकाव्य है। प्रसाद की यह अंतिम काव्य रचना 1936 ई. में प्रकाशित हुई, परंतु इसका प्रणयन प्रायरू 7-8 वर्ष पूर्व ही प्रारंभ हो गया था। इसके आलावा भी प्रसाद ने कई सर्वश्रेष्ठ रचनाएं दी जिसमें आँसू, झरना, कानन-कुसुम, लहर, शामिल हैं।

हरिवंश राय बच्चन - मधुशाला
हरिवंश राय श्रीवास्तव ‘बच्चन’ ‘हालावाद’ के प्रवर्तक बच्चन जी हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों मे से एक हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति मधुशाला है। बच्चन जी की गिनती हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में होती है। अगर यह कहा जाए की उन्होंने साहित्य को आम लोगों के जुबां तक ल दिया तो यह अतिशोयोक्ति नहीं होगी। मधुशाला पहलीबार सन 1935 में प्रकाशित हुई थी। कवि सम्मेलनों में मधुशाला की रूबाइयों के पाठ से हरिवंश राय बच्चन को काफी प्रसिद्धि मिली। मधुशाला की हर रूबाई मधुशाला शब्द से समाप्त होती है। हरिवंश राय बच्चन ने मधु, मदिरा, हाला (शराब), साकी (शराब पड़ोसने वाली), प्याला (कप या ग्लास), मधुशाला और मदिरालय की मदद से जीवन की जटिलताओं के विश्लेषण का प्रयास किया है। मधुशाला जब पहलीबार प्रकाशित हुई तो शराब की प्रशंसा के लिए कई लोगों ने उनकी आलोचना की। बच्चन की आत्मकथा के अनुसार, महात्मा गांधी ने मधुशाला का पाठ सुनकर कहा कि मधुशाला की आलोचना ठीक नहीं है। मधुशाला के अलावा उन्होंने तेरा हार (1929), मधुशाला (1935), मधुबाला (1936), मधुकलश (1937), निशा निमंत्रण (1938), एकांत संगीत (1939), आकुल अंतर (1943), सतरंगिनी (1945), हलाहल (1946), बंगाल का काव्य (1946) जैसी सर्वश्रेष्ठ रचनाए भी दी।
मधुशाला की एक रूबाई...
मुसलमान और हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।

भीष्म साहनी-तमस
तमस भीष्म साहनी के साथ-साथ हिन्दी जगत की सबसे प्रसिद्ध रचना है। तमस की कथा परिधि में अप्रैल 1947 के समय में पंजाब के जिले को परिवेश के रूप में लिया गया है। तमस कुल पांच दिनों की कहानी को लेकर बुना गया उपन्यास है। परंतु कथा में जो प्रसंग संदर्भ और निष्कर्ष उभरते हैं, उससे यह पांच दिवस की कथा न होकर बीसवीं सदी के हिंदुस्तान के अब तक के लगभग सौ वर्षो की कथा हो जाती है। यों संपूर्ण कथावस्तु दो खंडों में विभाजित है। पहले खंड में कुल तेरह प्रकरण हैं। दूसरा खंड गांव पर केंद्रित है। श्तमसश् उपन्यास का रचनात्मक संगठन कलात्मक संधान की दृष्टि से प्रशंसनीय है। इसमें प्रयुक्त संवाद और नाटकीय तत्व प्रभावकारी हैं। भाषा हिन्दी, उर्दू, पंजाबी एवं अंग्रेजी के मिश्रित रूप वाली है। भाषायी अनुशासन कथ्य के प्रभाव को गहराता है। साथ ही कथ्य के अनुरूप वर्णनात्मक, मनोविशेषणात्मक एवं विशेषणात्मक शैली का प्रयोग सर्जक के शिल्प कौशल को उजागर करता है। तमस के अलावा भीष्म साहनी ने झरोखे, बसन्ती, मायादास की माडी, कुन्तो, नीलू निलिमा निलोफर जैसा रचना लोगों को दी

धर्मवीर भारती- गुनाहों का देवता
यह हिंदी उपन्यासकार भारत में सर्वाधिक पढ़े जाने वाले उपन्यासों में से एक है। इसमें प्रेम के अव्यक्त और अलौकिक रूप का अन्यतम चित्रण है। इस उपन्यास के एक सौ से ज्यादा संस्करण छप चुके हैं। कहानी का नायक चंदर सुधा से प्रेम तो करता है, लेकिन सुधा के पापा के उस पर किए गए अहसान और व्यक्तित्व पर हावी उसके आदर्श कुछ ऐसा ताना-बाना बुनते हैं कि वह चाहते हुए भी कभी अपने मन की बात सुधा से नहीं कह पाता। सुधा की नजरों में वह देवता बने रहना चाहता है और होता भी यही है। सुधा से उसका नाता वैसा ही है, जैसा एक देवता और भक्त का होता है। प्रेम को लेकर चंदर का द्वंद्व उपन्यास के ज्यादातर हिस्से में बना रहता है। नतीजा यह होता है कि सुधा की शादी कहीं और हो जाती है और अंत में उसे दुनिया छोड़कर जाना पड़ता है। धर्मवीर भारती ने इसके अलावा भी सूरज का सातवां घोड़ा, ग्यारह सपनों का देश, प्रारंभ व समापन जैसा उपन्यास लिखा जो आज भी कालजयी है। वैसे गुनाहों के देवता की प्रसिद्ध पंक्तिया.....
1. छह बरस से साठ बरस तक की कौन-सी ऐसी स्त्री है, जो अपने रूप की प्रशंसा पर बेहोश न हो जाए।
2. अविश्वास आदमी की प्रवृत्ति को जितना बिगाड़ता है, विश्वास उतना ही बनाता है।
3. ऐसे अवसरों पर जब मनुष्य को गंभीरतम उत्तरदायित्व सौंपा जाता है, तब स्वभावतरू आदमी के चरित्र में एक विचित्र-सा निखार आ जाता है।
4. जब भावना और सौंदर्य के उपासक को बुद्धि और वास्तविकता की ठेस लगती है, तब वह सहसा कटुता और व्यंग्य से उबल उठता है।




No comments:

Post a Comment